Sunday, June 13, 2010

अपने बन गये आसमा के सितारे

इंसान की जिन्दगी भी क्या चीज़ है ?
जिन्दगी भर हँसता है रोने के लिए
मर जाता है कुछ देर सोने के लिए
दुनिया कहती है भगवान् को प्यारा हो गया
वो खुद रोता है उसे खोने के लिए
है आख में आसू आखो के नमी के लिए
दिल डर है अपनों को कमी के लिए
सजती है महफ़िल बेगानों के घर
भूल जाते है उन्हें बेगानों को दिखाने के लिए
भूल ते नही सितारे वो देखते है हर पल

1 comment:

  1. अति सुन्दर रचना हैँ। ब्लोग जगत मेँ आपका स्वागत हैँ। शुभकामनायेँ! -: VISIT MY BLOG :- ऐसे मेँ क्यूँ रुठ जाती हो?.......... इस कविता को पढ़ने के लिए आप सादर आमंन्त्रित हैँ। आप इस पते पर क्लिक कर सकते हैँ।

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